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ठगिनी और व्यापारी भाग-9

                        भाग- 9

यश- वो इस लिए क्योंकि मैं एक खूबसूरत लड़का हूँ. अगर तुमने मुझे छोड़ दिया तो तुम्हारे दिल को सूकून मिलेगा. वरना तुम पूरी उम्र पछताओगी..
रूपवती- चुप कर. भला मैं क्यों पछताऊँगी? मुझे किसी से कोई मतलब नहीं है. यकीन न हो तो इस बिस्तर के नीचे तलघर में बने उस कक्ष में झांककर देख लो. कितने नर कंकाल पड़े हैं. अगर तुमने नहीं बताया की तुम्हारा धन कहाँ है तो तुम भी अभी उन कंकालों के साथ शामिल हो जाओगे?
यशवर्धन को इसी दौरान पता चल जाता है की वह जितना रूपवती को साधारण समझ रहा था वह उतनी साधारण नहीं थी. उसे अचानक अपने ब्राह्मण दोस्त का चौथा कथन याद आता है जिसमे उसने उसे बताया था की जब तुम कभी किसी बुरी परिस्थिति में फंसे हो तो उस परिस्थिति से निकलने के लिए हर तरीका अपना लो. उसने स्थिति को संभालते हुए कहा- रुको..रुको..मैंने तुम्हे बोला न अगर तुमने मुझे मार दिया तो तुम पछताओगी. बहुत पछताओगी. ठीक उसी रामप्रताप की तरह.
रूपवती- क्या? और ये रामप्रताप कौन था?
यश- बताता हूँ..बताता हूँ..
रूपवती- बताओ जल्दी बताओ वरना ये खंजर तुम्हारे पेट में घूसों दूँगी मैं..
यश- अरे.. अरे रुको.. तो सुनो.. एक बार एक रामप्रताप नाम का व्यक्ति था.
रूपवती- फिर..
यश- वह बहुत गरीब था इस कारण उसने एक बार निश्चय किया की वो विदेश जाकर काम करे. इस लिए उसने अपने दस वर्षीय बेटे और अपनी पत्नी को अकेला छोड़कर विदेश चला गया.
रूपवती- फिर.. आगे..जल्दी बोलो..
यश- तो उसने वहां बड़ी मेहनत से काम किया लेकिन वह कुछ ज्यादा धन इकठ्ठा नहीं कर पा रहा था. एक बार उसने अपनी पत्नी और अपने बेटे के लिए एक मिठाई का डिब्बा अपने दोस्त के हाथ भेज दिया क्योंकि वह धन इकठ्ठा करना चाहता था.
रूपवती- फिर आगे क्या हुआ..
यश- फिर उसका दोस्त उसके गाँव आ गया उसने उसकी पत्नी को वो मिठाई का डिब्बा दे दिया. जब रामप्रताप की पत्नी ने घर पर डिब्बा खोला तो वह आश्चर्य चकित हो गई..
रूपवती- क्यों? ऐसा क्या था उस डिब्बे में?
यश- अरे उस डिब्बे में हीरे-मोती भरे हुए थे.
रूपवती- क्य! वो कैसे? लेकिन उसने तो अपने पत्नी और बेटे के लिए मिठाई का डिब्बा भेजा था तो उसमे हीरे- मोती कहाँ से आए?
यश- सही कहा. उसने तो मिठाई ही भेजी थी लेकिन ईश्वर ने उसकी अपने मालिक के प्रति ईमानदारी और कर्तव्यपरायनता से प्रसन्न होकर उस मिठाई को हीरे-जवाहरातो में तब्दील कर दिया.
रूपवती- वाह! ये तो बहुत अच्छा हुआ. फिर आगे क्या हुआ?
यश- फिर रामप्रताप की पत्नी ने घर में निर्माण कार्य शुरू करवा दिया. रामप्रताप का घर अब गाँव का सबसे अमीर बन गया लेकिन इस बात का पता रामप्रताप को नहीं चला. उसे किसी ने नहीं बताया. इधर वह जब पांच साल बाद घर आया तो वह घर देरी से पहुंचा. रात हो चुकी थी. उसने जैसे ही घर के झोपड़ों को बड़ी हवेली में बदला हुआ पाया तो उसे यकीन नहीं हुआ. वह उसी पल क्रोधित हो गया.
रूपवती- क्यों? उसे तो खुश होना चाहिए था.
यश- नहीं वह खुश नहीं हुआ क्योंकि उसे अपनी पत्नी पर शक हुआ. उसने सोचा की उसने तो विदेश से इतना पैसा नहीं भेजा था जिससे इतनी बड़ी हवेली बन सके लेकिन वहां तो गाँव की सबसे बड़ी हवेली थी. वह गुस्से में हवेली के अन्दर प्रवेश करता है. वह जैसे ही अपनी पत्नी के कक्ष में जाता है तो देखता है की उसके साथ एक बीस वर्षीय नोजवान सोया हुआ था. वह गुस्से में आग बबूला हो गया. अपनी पत्नी को किसी पराए मर्द के साथ सोया हुआ देखकर उसके गुस्से की कोई सीमा नहीं रही. उसने पास में दीवार पर लटकी हुई तलवार को उठाया और उस नौजवान युवक को सोते हुए ही मौत के घाट उतार दिया. उस युवक की चीख के साथ ही उसकी पत्नी खड़ी हुई. उसने उस नौजवान को मरा हुआ देखकर और अपने पति को उस अवस्था में देखकर चौंक गई. उसने कांपती हुई आवाज में पूछा- ये.. ये क्या किया आपने?
रामप्रताप- वही जो मुझे करना चाहिए था कुलछली. तुम मेरे पीछे से किसी पराये मर्द के साथ सो रही थी यही कारण था की तुमने हवेली बना ली. बता कमीनी ये कौन था?
रामप्रताप की पत्नी ने चीखकर कहा- हे! भगवान जिस लड़के को आपने पराया मर्द समझकर मारा है वह कोई और नहीं हमारा इकलौता बेटा सोमवीर था. हाय मेरे बेटे को मार दिया. उसी पल रामप्रताप को भी गहरा आघात लगा और वह भी मर गया. अपने पति और अपने जवान बेटे को मरा हुआ देखकर उसकी पत्नी भी सदमे की वजह से मर गई.
रूपवती ने दुखी होकर कहा- हे! राम. ये तो बहुत गलत हुआ.
यश- हाँ! रामप्रताप का भरा पूरा परिवार उजड़ा क्योंकि उसने बिना सोचे समझे अपने बेटे को मार दिया. क्रोध हमारी बुद्धि को नष्ट कर देता है इस लिए हमेशा अकलमंदी से काम करो. इसलिए मैं तुम्हे कह रहा हूँ की मुझे मारकर तुम्हे कुछ नहीं मिलने वाला है. तुम भी फिर रामप्रताप की तरह पछताओगी.
रूपवती ने खड़ा होकर यशवर्धन के पेट पर वो खंजर लगाकर गुस्से में कहा. अच्छा.. बात का विषय मत बदलो. चुपचाप उस धन के बारे में बता दो जो तुम लेकर आए हो वरना ये खंजर में तेरे सीने में घूसों दूँगी.. चल बता...
यश- अरे! अरे! शांत हो जाओ..
यश वर्धन उस ठगिनी को अपनी बातों में उलझाकर कैसे भी करके मुर्ख बनाने का प्रयास कर रहा था लेकिन ये सब इतना आसन नहीं था. खैर उसने मौका पाकर अगली चाल चल दी. इधर रूपवती का पिता और उसकी बड़ी बहन गहरी नींद में सो गए. रात का दूसरा पहर शुरू हो चुका था. यश को कैसे भी करके वहां से निकलना था. वह आगे कुछ सोच पता इससे पूर्व ही उस ठगिनी ने फिर से उससे क्रोधित होकर कहा- तुम धन का पता बताते हो या नहीं?
यश- अरे! ठहरो. ठहरो मैंने तुम्हे कितनी बार कहा है की मेरे पास कोई पैसा-वैसा नहीं है. अगर तुमने मुझे मार दिया तो तुम भी उस लक्खी बंजारे की तरह कहोगी हाय मेरे मोती.. हाय मेरे मोती..
रूपवती- वो कौन था? जल्दी बता वर्ना मैं तुम्हारा मोती बाहर निकाल दूँगी.
यश- बताता हूँ..बताता हूँ. ठहरो..
रूपवती- तुम वो कहानी सुनाते हो या नहीं जल्दी से बाताओ..वरना..
यश- ठीक है..ठीक है.. एक बार एक लक्खी नाम का बंजारा था.
रूपवती- तो..
यश- वह एक गाँव से दूसरे गाँव और एक कस्बे से दूसरे कस्बे में बादाम, शहद, काजू आदि बेचता था.
रूपवती- फिर..
यश- उसके पास एक वफादार कुता था जिसका नाम मोती था.
रुपवती- फिर? जल्दी बोलो..
यश- तो एक बार लक्खी बंजारे को व्यापार में घाटा लग गया. इस वजह से उसने अपने व्यापार को वापस सही रास्ते पर लाने के लिए उसने एक सेठजी से पैसे उधार देने को कहा. सेठ ने पैसे उधार देने से मना कर दिया क्योंकि उसके पास गिरवी रखने के लिए कुछ भी नहीं था.
रूपवती- फिर..
यश- फिर जब सेठ नहीं माना तो उसने अपने वफादार कुते को एक साल के लिए गिरवी रख दिया और कुछ धन लेकर वहां से चला गया. उसने मोती को सेठ की सेवा करने के लिए बोल दिया और सेठजी से कहा की वह एक साल बाद उसके पैसे मूल सहित वापस लौटा देगा और अपना कुता वापस ले जाएगा.
रूपवती- फिर
यश- फिर बंजारा वहां से चला गया. उसने व्यापार शुरू कर दिया. उसे मुनाफा होने लगा. इधर मोती भी अपने सेठजी की सेवा में लगा हुआ था. एक रोज चार लुटेरों ने सेठजी की दूकान को लूट लिया. मोती ने उन्हें देख लिया लेकिन अगर वह उन पर भौंकता तो फिर वो लूटेरे उसे मार देते.
रूपवती- तो फिर क्या हुआ? जल्दी बोलो?
यश- फिर वो उन लूटेरो का पीछा करता हुआ जाने लगा. सभी लुटेरे गाँव के बाहर एक बरगद के पेड़ के नीचे रुके. उन्होंने समय की नजाकत को ध्यान में रखकर उन पैसों को उस पेड़ के नीचे ही मिटटी में दफना देने का सोचा क्योंकि क्या पता पैसे पास में होने की वजह से उस राज्य का राजा उन्हें दण्डित कर देता.
रूपवती- फिर?
यश- फिर वे वहां से चले गए. मोती सेठजी के घर वापस आ गया. अगले दिन सेठ जब दूकान के लुटे जाने का विलाप कर रहा था तो मोती ने सेठजी की धोती को अपने मुहं में पकड़कर खींचना चाहा. पास में ही खड़े मुखिया की नजर जब मोती पर पड़ी तो उन्होंने सोचते हुए कहा- सेठजी! ये कुता किसका है?
सेठजी ने कहा- यह कुता तो लक्खी बंजारे का है.
मुखिया- यह कुता मुझे बुद्धिमान प्रतीत हो रहा है और शायद यह आपको कहीं ले जाना चाहता है तभी यह आपकी धोती खिंच रहा है?.
सभी लोग- हाँ! हा! सेठजी.. मुखिया जी सही कह रहे हैं. हम इस कुते के साथ-साथ चलते हैं. फिर मुखियाजी और पूरा गाँव मोती के पीछे-पीछे चलने लगा. मोती ने पेड़ के नीचे पहुँचते ही उस जगह को खोदना शुरू किया जहाँ पर वो धन छुपाया गया था. गाँव वालो ने उस जगह को खोदा तो सेठजी के सारे पैसे निकल गए. सेठजी ने मोती के माथे को चूमा और बहुत खुश हुए. घर आकर उन्होंने बही के कागज को निकाला जिस पर उन्होंने लक्खी बंजारे को दिए गए धन का उल्लेख किया था.
रूपवती- फिर?
यश- फिर उन्होंने उस कागज को एक ताबीज में डाला और मोती के द्वारा किए गए बहादुरी और बुद्दिमानी कार्य का उल्लेख किया. उन्होंने ये भी लिखा की वो मोती को तुम्हारे पास आने के लिए छोड़ रहे हैं और पूरे पैसे और उसका ब्याज मोती की बहादुरी के मद्देनजर माफ़ कर रहे हैं. उसने उस ताबीज को मोती के गले में डाल दिया और मोती को अपने मालिक के पास जाने के लिए बोल दिया.
मोती को सेठजी के निर्णय पर बहुत ख़ुशी हुई. वह दौड़ता हुआ अपने मालिक लक्खी बंजारे के घर की तरफ जाने लगा. इधर लक्खी बंजारे ने भी मोती को छुड़ाने के लिए वो मूल धन और उसका ब्याज इकठ्ठा कर लिया था इस लिए वह सेठजी की दूकान की तरफ आ रहा था. गाँव से बाहर मोती को अपनी और आते देखकर लक्खी बंजारे को गुस्सा आ गया क्योंकि उसे शक हुआ की मोती जानबूझकर सेठजी की दूकान को छोड़कर भागकर आया है. इस लिए उसने क्रोधित होकर अपनी तलवार निकाली और मोती को जान से मार दिया. मोती का सर जैसे ही दूर गिरा तो उसमे डाला गया वो ताबीज लक्खी बंजारे के पांवो में आकर गिरा. उसने उसे खोला और पढ़ा. उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा. उसने अपने गुस्से में अपने सबसे प्यारे और वफादार मोती को मार दिया था. वह वही पर ही हाय मोती..हाय मोती करता हुआ मर गया.
रूपवती- हे! रामजी बहुत बुरा हुआ..
यश- हाँ सही कहा.. अगर तुमने भी मुझे मार दिया तो तुम भी उस लक्खी बंजारे की तरह कहोगी. हाय मेरे यशवर्धन..हाय मेरे यशवर्धन..
रूपवती- तुम चुप करो.. और चुपचाप उस धन का पता बताओ वर्ना मैं तुम्हे मार दूँगी..
यश- लेकिन तुम्हे मारने से क्या मिलेगा? तुम चाहो तो मुझसे शादी कर सकती हो. तुम बहुत खूबसूरत हो.
रूपवती- अच्छा? तो फिर कोई प्रेम कहानी सुनाओ फिर.. लेकिन अबकी बार वाली कहानी का अंत बुरा नहीं होना चाहिए वर्ना मैं तुम्हारे सीने में ये खंजर घूसों दूँगी.
यश को उसी पल पता चल जाता है की ठगिनी उसकी कहानी सुनाने की कला से प्रभावित हो रही है. इस लिए उसे अब ठगिनी को हराने के लिए अगली चाल चलनी थी. अचानक उसकी नजर उसके हाथ में उस नशे की डिबिया पर पड़ी जिसे वो उसे बेहोश करने के लिए लाई थी. वह जब कुछ देर नहीं बोलता तो रूपवती ने क्रोधित होकर कहा- कहानी सुनाते हो या अभी तुम्हे मार दूं?
यश- सुनाता हूँ लेकिन पहले तुम ये बताओ की तुम्हारे हाथ में ये डिबिया किस चीज की है?
रूपवती( डिबिया को उसकी तरफ दिखाते हुए) – ये.. इसे तो मैं तुम्हे बेहोश करने के लिए लाई थी.
यश- ओह! इससे कोई बेहोश कैसे होता है? क्या है ना मैंने आज तक ऐसी कोई चीज नहीं देखी.
रूपवती- अच्छा? ये तो बहुत आसान होती है.
फिर उसने उस डिबिया को खोला फिर कहा- सबसे पहले इसे खोलो.
यश- फिर?
रूपवती ने उस डिबिया को खोलकर फिर अपने नाक के पास ले जाकर कहा- फिर इसे जिस व्यक्ति को बेहोश करना हो उसके नाक के पास ले जाओ.
यश- फिर?
रूपवती यश की बातों में ज्यादा खो गई है इस कारण उसे आभाष नहीं होता है की वो डिबिया बिलकुल उसके नाक के पास है. उसने फिर एक गहरी साँस लेते हुए कहा- फिर जब वह व्यक्ति साँस लेगा तो वह वही बेहोश हो जाएगा और फिर उसके साथ जो करो वो कर सकते हो..
रूपवती ने अज्ञानता वश उस डिबिया के पदार्ध को सूंघ लिया. वह वही बेहोश हो गई. यशवर्धन मुस्कुराते हुए बुदबुदाया- शाबाश! तुम तो गई...
और उसी पल रूपवती बेशोश हो गई. उसे अब उस घर से शीघ्र ही निकलना था क्योंकि रात का चौथा पहर शुरू होने वाला था. वह इधर-उधर रस्सी की तलाश करने लग जाता है. इधर अचानक रूपवती की बड़ी बहन की नींद खुल जाती है.
क्रमश...

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1 Comments

Dilawar Singh

15-Feb-2024 05:29 PM

अद्भुत अति सुन्दर 👌👌

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